अमर हुतात्मा राम एवं शरद कोठारी
संक्षिप्त जीवन परिचय

अमर हुतात्मा श्री रामकुमार कोठारी का जन्म २७ जुलाई १९६८ ई० एवं श्री शरद कोठारी का जन्म १४ अक्टूबर १९७० ई० को कोलकाता में हुआ। संत हृदय पिताश्री स्वर्गीय हीरालालजी कोठारी एवं वीरमाता स्वर्गीय सुमित्रा देवी कोठारी के संस्कारों से आप दोनों ने अपनी शिक्षा पूरी की। शान्त स्वभाव एवं मृदुभाषी होने के कारण आप परिवार में सबके प्रिय बन गये। अल्पायु से ही दोनों भ्राताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में संस्कारों से ओत-प्रोत होते हुए विभिन्न दायित्वों का पालन किया और इसी क्रम में १९८९ ई० में अयोध्या आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। सन् १९९० ई० में अयोध्या में कारसेवा के आह्वान पर इस ऐतिहासिक कलंक को समाप्त करने के लिए आपने अन्य कारसेवकों के साथ अयोध्या के लिए कूच किया। ३० अक्टूबर को मन्दिर परिसर में प्रवेश किया एवं शिखर पर भगवा ध्वज फहराया और भारतमाता की जय के तुमुल उद्घोष के साथ ही सम्पूर्ण हिन्दू समाज को गौरवान्वित किया। २ नवम्बर १९९० ई० को कार्त्तिक पूर्णिमा के दिन छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने कारसेवकों पर निर्ममता पूर्वक गोलियाँ चलवाईं, जिसमें आप दोनों ने सबसे आगे रहते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।

अमर हुतात्मा श्री रामकुमार कोठारी का जन्म २७ जुलाई १९६८ ई० एवं श्री शरद कोठारी का जन्म १४ अक्टूबर १९७० ई० को कोलकाता में हुआ। संत हृदय पिताश्री स्वर्गीय हीरालालजी कोठारी एवं वीरमाता स्वर्गीय सुमित्रा देवी कोठारी के संस्कारों से आप दोनों ने अपनी शिक्षा पूरी की। शान्त स्वभाव एवं मृदुभाषी होने के कारण आप परिवार में सबके प्रिय बन गये। अल्पायु से ही दोनों भ्राताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में संस्कारों से ओत-प्रोत होते हुए विभिन्न दायित्वों का पालन किया और इसी क्रम में १९८९ ई० में अयोध्या आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई।

सन् १९९० ई० में अयोध्या में कारसेवा के आह्वान पर इस ऐतिहासिक कलंक को समाप्त करने के लिए आपने अन्य कारसेवकों के साथ अयोध्या के लिए कूच किया। ३० अक्टूबर को मन्दिर परिसर में प्रवेश किया एवं शिखर पर भगवा ध्वज फहराया और भारतमाता की जय के तुमुल उद्घोष के साथ ही सम्पूर्ण हिन्दू समाज को गौरवान्वित किया। २ नवम्बर १९९० ई० को कार्त्तिक पूर्णिमा के दिन छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने कारसेवकों पर निर्ममता पूर्वक गोलियाँ चलवाईं, जिसमें आप दोनों ने सबसे आगे रहते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।

ऐसे वीर भ्राताद्वय राम एवं शरद कोठारी को शत् शत् नमन !